ऊबर और ओला ने भले ही अपने मोबाइल ऐप वाले बिजनस मॉडल से भारत के टैक्सी मार्केट को नुकसान पहुंचाया हो लेकिन कैब ड्राइवरों की बल्ले-बल्ले हो गई है। इन टैक्सी ऑपरेटरों से जुड़े कैब ड्राइवर जहां पहले हर महीने सिर्फ 15,000-20,000 रुपये कमाते थे, अब 75, 000 और 1 लाख रुपये प्रति महीना कमाते हैं।
फाइनैंशल एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरु का एक कैब ड्राइवर लोकेश आर. अब करीब 1.25 लाख रुपये हर महीने कमाते हैं। उन्होंने बताया, 'वैसे तो मैं हर महीने औसत करीब 80,000 रुपये कमाई कर लेता हूं लेकिन भाग्य साथ दे देता है तो मेरी कमाई 1 लाख रुपये से पार कर जाती है।' पहले इस तरह की सर्विस शुरू होने से पहले वह हर महीने करीब 15,000-20,000 रुपये कमाते थे।
टैक्सीफॉरश्योर के सीईओ अरविंद सिंघल ने बताया कि बड़े पैमाने प र सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हुआ है। सिंघल ने बताया, 'हमारे पास बहुत से शिक्षित लोग कैब ड्राइवर बनने के लिए आते हैं। यहां तक कि एक इंजिनियर को भी हमने ड्राइवर के रूप में ठेके पर रखा है जिनका कहना है कि वह किसी प्रकार की आईटी से संबंधित नौकरी की तुलना में उद्यमी सोच को तरजीह देते हैं।'ऑनलाइन टैक्सी अग्रीगेटर्स जैसे ऊबर, ओला और टैक्सीफॉरश्योर ने मोबाइल ऐप टेक्नॉलजी और उच्च प्रतियोगी मूल्यों की मदद से भारत के कैब सर्विस मार्केट में भारी बदलाव ला दिया है।
भारत में टैक्सी मार्केट करीब 11,000 करोड़ रुपये का है और दो अंकों में ग्रोथ कर रहा है और इस बिजनस में ड्राइवर की काफी अहमियत है क्योंकि वे इस बिजनस के आधार स्तंभ की तरह हैं। ड्राइवरों की अहमियत के कारण टैक्सी ऑपरेटर्स इनको काम का बेहतर मुआवजा देते हैं। ऊबर का ही मामला ले लें, हर ट्रिप के लिए ड्राइवर को किराये का 80 फीसदी मिलता है जो उनके बैंक खाते जमा हो जाता है। पीक ऑवर्स के दौरान हर ट्रिप के लिए 150 रुपये का बोन, पेमेंट मिलता है और गैर पीक ऑवर्स के लिए 50 रुपये हर ट्रिप पर। ओला तो ड्राइवरों को एक दिन में छह ट्रिप करने पर भी बोनस देता है। टैक्सीफॉरश्योर अधिक से अधिक ड्राइवरों को आकर्षित करने के लिए उनसे किराये का सिर्फ 8-12 फीसदी ही लेता है।
करीब पांच साल पहले बेंगलुरु आए बासवराज कर्ज के बोझ तले दबे हुए थे जो आज अपने सभी कर्जों का भुगतान करने के बाद खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।
फाइनैंशल एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरु का एक कैब ड्राइवर लोकेश आर. अब करीब 1.25 लाख रुपये हर महीने कमाते हैं। उन्होंने बताया, 'वैसे तो मैं हर महीने औसत करीब 80,000 रुपये कमाई कर लेता हूं लेकिन भाग्य साथ दे देता है तो मेरी कमाई 1 लाख रुपये से पार कर जाती है।' पहले इस तरह की सर्विस शुरू होने से पहले वह हर महीने करीब 15,000-20,000 रुपये कमाते थे।
टैक्सीफॉरश्योर के सीईओ अरविंद सिंघल ने बताया कि बड़े पैमाने प र सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हुआ है। सिंघल ने बताया, 'हमारे पास बहुत से शिक्षित लोग कैब ड्राइवर बनने के लिए आते हैं। यहां तक कि एक इंजिनियर को भी हमने ड्राइवर के रूप में ठेके पर रखा है जिनका कहना है कि वह किसी प्रकार की आईटी से संबंधित नौकरी की तुलना में उद्यमी सोच को तरजीह देते हैं।'ऑनलाइन टैक्सी अग्रीगेटर्स जैसे ऊबर, ओला और टैक्सीफॉरश्योर ने मोबाइल ऐप टेक्नॉलजी और उच्च प्रतियोगी मूल्यों की मदद से भारत के कैब सर्विस मार्केट में भारी बदलाव ला दिया है।
भारत में टैक्सी मार्केट करीब 11,000 करोड़ रुपये का है और दो अंकों में ग्रोथ कर रहा है और इस बिजनस में ड्राइवर की काफी अहमियत है क्योंकि वे इस बिजनस के आधार स्तंभ की तरह हैं। ड्राइवरों की अहमियत के कारण टैक्सी ऑपरेटर्स इनको काम का बेहतर मुआवजा देते हैं। ऊबर का ही मामला ले लें, हर ट्रिप के लिए ड्राइवर को किराये का 80 फीसदी मिलता है जो उनके बैंक खाते जमा हो जाता है। पीक ऑवर्स के दौरान हर ट्रिप के लिए 150 रुपये का बोन, पेमेंट मिलता है और गैर पीक ऑवर्स के लिए 50 रुपये हर ट्रिप पर। ओला तो ड्राइवरों को एक दिन में छह ट्रिप करने पर भी बोनस देता है। टैक्सीफॉरश्योर अधिक से अधिक ड्राइवरों को आकर्षित करने के लिए उनसे किराये का सिर्फ 8-12 फीसदी ही लेता है।
करीब पांच साल पहले बेंगलुरु आए बासवराज कर्ज के बोझ तले दबे हुए थे जो आज अपने सभी कर्जों का भुगतान करने के बाद खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।
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